नई दिल्ली,राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने देशभर में प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रहे लाखों आशा कार्यकर्ताओं को एक निश्चित वेतन, भत्ता, पेंशन के साथ-साथ औपचारिक कार्यकर्ता का दर्जा देने का सुझाव दिया है।
आयोग ने कहा है कि आशा कार्यकर्ताओं ने करीब 20 सालों से उल्लेखनीय कार्य किया है और इसकी वजह से देश में नवजात और शिशु मृत्यु दर में कमी आई है। ऐसे में उनकी कार्य स्थितियों और जीवन स्तर में सुधार के लिए एक ठोस नीति और कार्रवाई योग्य उपायों को अपनाने की जरूरत है। एनएचआरसी के अध्यक्ष जस्टिस वी रामसुब्रमण्यन की अध्यक्षता में हाल ही में ‘मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा) को सशक्त बनाना’ विषय पर हुई कोर ग्रुप की बैठक हुई। इसमें सभी हितधारकों के साथ चर्चा के बाद कई सुझाव दिए गए।
आयोग के अध्यक्ष जस्टिस रामसुब्रमण्यन ने कहा कि औपचारिक शिक्षा के बगैर भी लोगों को कुशल कामगार बनने के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि देश में जहां शिक्षित लोगों की संख्या बहुत है, वहीं कुशल कामगारों की भारी कमी है, ऐसे में आशा योजना के माध्यम से इस अंतर को दूर किया जा सकता है।
देखभाल करने वाले हाशिए पर चले जाते हैं : जस्टिस रामसुब्रमण्यन ने कहा कि विडंबना यह है कि जो लोग समाज में सबसे अधिक योगदान देते हैं, उन्हें अक्सर सबसे कम मिलता है और जो लोग हाशिए पर पड़े लोगों की देखभाल करते हैं, वे खुद हाशिए पर चले जाते हैं। एनएचआरसी द्वारा आयोजित इस बैठक में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के संयुक्त सचिव, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के संयुक्त सचिव के अलावा कई अन्य विभागों व विशेषज्ञों ने भी अपने-अपने ने भी विचार व्यक्त किए।
ब्रिज कोर्स शुरू करें
आयोग ने औपचारिक स्वास्थ्य सेवा भूमिकाओं के लिए आशा कार्यकर्ताओं को प्रमाणित करने के लिए मेडिकल कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के सहयोग से ब्रिज कोर्स शुरू करने की सिफारिश की है। इसके अतिरिक्त आशा कार्यकर्ताओं के लिए अच्छे रोजगार के अवसर पैदा करते हुए किफायती समुदाय आधारित देखभाल सेवाओं का विस्तार करने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देने का भी सुझाव दिया गया।
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