सरकारी नियुक्तियों से लोगों में बढ़ती जा रही शिकायत
बिहार और उत्तर प्रदेश समेत तमाम हिंदीभाषी राज्यों में नियुक्तियों के दौरान अनियमितता की शिकायतें सुर्खियां बटोरती रही हैं, पर कभी शिक्षा का गढ़ रहा पश्चिम बंगाल भी अब कठघरे में खड़ा हो गया है। यहां बीते नौ वर्ष से जारी अब तक के सबसे बड़े घोटाले में करीब 26 हजार शिक्षकों की नियुक्ति की गई थी। कलकत्ता हाईकोर्ट ने तो बीते साल अप्रैल में ही इस फर्जीवाड़े के आरोप में तमाम शिक्षकों की नियुक्तियां रद्द कर दी थीं। राज्य सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के फैसले को ही बरकरार रखा है, इस फैसले को ममता बनर्जी सरकार के लिए भारी झटका माना जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने तीन महीने में नियुक्ति की नई प्रक्रिया शुरू करने को कहा है। इस फैसले के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि अदालत के फैसले का पालन किया जाएगा और नई नियुक्तियों की कवायद तय समय में शुरू होगी। ममता बनर्जी सरकार के अब तक के इस सबसे बड़े भर्ती घोटाले में पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी समेत तृणमूल कांग्रेस के कई विधायक व नेता जेल में हैं। बीते साल लोकसभा चुनाव के दौरान ही हाईकोर्ट के फैसले को विपक्ष ने प्रमुख मुद्दा बनाया था, पर ममता ने सुप्रीम कोर्ट में उसे चुनौती देते हुए कहा था कि वहां से फैसला नहीं होने तक तमाम शिक्षक काम करते रहेंगे और उनको वेतन मिलता रहेगा,पर अब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के मंसूबों पर पानी फेर दिया है।
जब नियुक्तियों को लेकर शिकायतें हर राज्य में सामने आ रही हैं, तब यह देखना दिलचस्प होगा कि बंगाल में शिक्षक नियुक्ति घोटाले को कैसे अंजाम दिया गया? दरअसल, पहले जो मेरिट लिस्ट तैयार की गई, उसमें सिलीगुड़ी की बबीता सरकार 77 नंबर पाकर टॉप 20 में जगह बनाने में कामयाब रही थी। पता नहीं क्यों इस मेरिट लिस्ट को रद्द करके नई लिस्ट जारी हुई, जिसमें बबीता सरकार का नाम वेटिंग लिस्ट में चला गया और तृणमूल कांग्रेस सरकार में मंत्री परेश अधिकारी की पुत्री अंकिता अधिकारी का नाम सूची में पहले नंबर पर आ गया। दिलचस्प यह भी कि अंकिता को बबीता के मुकाबले 16 नंबर कम मिले थे। फिर क्या था, धीरे-धीरे घोटाले से परदा उठने लगा। बबीता सरकार के पिता ने कलकत्ता हाईकोर्ट में दूसरी मेरिट लिस्ट को चुनौती देते एक याचिका दायर कर दी। अदालत ने जांच के लिए समिति गठित की और घोटाला सामने आ गया।
यह ऐसा घोटाला है, जिससे पता चलता है कि नियुक्तियों में भ्रष्टाचार की वजह से स्थितियां विकट हो गई हैं। हर स्तर पर फर्जीवाड़े का सहारा लिया जा रहा है। बाद में बबीता सरकार को भी ग्रेजुएशन के नंबर बढ़ा कर बताने के आरोप में नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। मतलब, घोटाले की शिकायत करने वाला पक्ष भी ईमानदार नहीं था। इस विचित्र घोटाले में दोषी अधिकारियों ने खुद को बचाते हुए दूसरों के कंधों पर रखकर बंदूक चलाने का प्रयास किया था, पर तत्कालीन शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी से गिरफ्तारी का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह बढ़ता चला गया। गलती केवल टॉपर बबीता की ही नहीं थी, सीबीआई जांच से पता चला कि एक हजार से ज्यादा उम्मीदवार भर्ती परीक्षा में बैठने के पात्र नहीं थे। हजारों उम्मीदवारों की असली ओएमआर शीट नष्ट कर दी गई थी।
खैर, जिनकी नौकरी चली गई, उन्हें नई भर्ती में फिर मौका मिलेगा, पर ईमानदार उम्मीदवारों के साथ बड़ी नाइंसाफी हुई है। सात-आठ साल नौकरी कर चुके उम्मीदवारों का कहना है कि सबको एक डंडे से हांकना उचित नहीं है। सरकार चाहती, तो योग्य और सिफारिश से भर्ती उम्मीदवारों की अलग-अलग सूची तैयार कर सकती थी, उसने बाद में सुप्रीम कोर्ट में यह बात कही भी, पर शायद उस पर अदालत को विश्वास न हुआ।
वास्तव में, सरकारी नियुक्तियों से लोगों का विश्वास कम हो रहा है। बंगाल में जो हुआ, उसकी चर्चा देश भर के युवा कर रहे हैं। इससे प्रतियोगी परीक्षा में बैठने वालों का भी मनोबल कम होगा, यह धारणा बनती है कि सरकारी नौकरी ईमानदारी से नहीं मिलती है। क्या हमारी सरकारें युवाओं और अन्य लोगों के बीच फैल रही इस नकारात्मक धारणा को रोकने के उपाय करेंगी?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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