शिक्षकों के मुद्दों पर योगी सरकार आखिर चुप्प क्यो ?

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 शिक्षकों के मुद्दों पर योगी सरकार आखिर चुप्प क्यो ?

उपसंपादक-देवेन्द्र पटेल प्रदेश भर के परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षक अपनी पुरानी पेंशन बहाली सहित आठ सूत्रीय मांगों को लेकर कई वर्षों से आदोलनरत है। प्रदेश सरकार शिक्षकों के मुद्दों, मांगों व समस्याओं पर पूरी तरह चुप्पी साधे ८ बैठी है। इस सवाल का जवाब श्रीपाने और अपने हक के लिए शिक्षक एक बार फिर से अनवरत संघर्ष का बिगुल फूंक दिया है। ऑनलाइन हाजिरी का आदेश आते ही धरना प्रदर्शन का क्रम शुरू हो गया है। शिक्षकों ने अपनी एकता का जिस तरह जोरदार प्रदर्शन किया है उससे एकबारगी तो लगा कि प्रदेश की योगी सरकार उनके मुद्दों पर गंभीरतापूर्वक विचार कर समस्याओं का कोई न कोई हल जरूरी निकालेगी। 

शिक्षकों की आठ सूत्रीय मांगों में तात्कालिक मांग ऑनलाइन हाजिरी व डिजिटलाइजेशन है। साथ ही शिक्षक काफी अर्से से 31 दिन ईएल, 15 दिन सी.एल., 15 दिन का हाफ सी.एल., चिकित्सा प्रतिपूर्ति, पुरानी पेंशन बहाली व शिक्षणेत्तर कार्यों से मुक्ति की मांग के लिए अपनी आवाज बुलंद करते रहते हैं। अब सवाल यह उठता है कि आखिर शिक्षकों की उक्त मांगों पर विचार क्यों नहीं किया जा सकता? पूर्व में भी शिक्षक पेंशन के हकदार रहें हैं। लगभग 35-40 साल तक स्थाई कर्मचारी के रूप में अनवरत सेवा प्रदान करने के बाद भी उनकी पुरानी पेंशन बहाली की मांग क्यों नहीं मानी जा सकती है, जबकि संसद व विधानसभा के जनप्रतिनिधि एक बार जीतने के बाद आजीवन पेंशन पाने का हकदार बन जाता है। 

वहीं जब राज्यकर्मचारी को सीएल, ईएल, हाफ डे सीएल और चिकित्सीय सुविधाएं मिल सकती है तो फिर राज्यकर्मचारी से शिक्षकों की परिस्थितियां भिन्न कैसे मानी जाती है, आखिर शिक्षकों के साथ दोयम दर्जे के मानक क्यों अपनाये जातेहैं। ये सब मुद्दों प्रदेश सरकार को गंभीरता से विचार करके शिक्षकों की मांगों व समस्याओं का स्थाई हल खोजना होगा। आश्वासन के बावजूद अभी तक कोई समाधान नहीं निकालना। योगी सरकार क इस उदासीनता और समाधान के प्रति चुप्पी से शिक्षकों में नाराजगी का माहौल बनता जा रहा है। प्रदेश भर के लगभग सात लाख शिक्षकों की नाराजगी किसी भी दल व सखार के लिए भारी पड़सकती है। हालक लोकसभा चुनाव में शिक्षकोंनाराजगी का खामियाजा भुगतने केबाद लोकतांत्रिक मूल्यों को सर्वोपरि मानने वाली योगी सरकार जन समस्याओं या जनता के मुद्दों पर लिन में आखिर अक्षम क्यों दिला तो नहीं कि नौकरशाही अपनी हठधर्मिता के चलते शिक्षकों का पक्ष प्रदेश सरकार के समक्ष सही ढंग से रखने से परहेज कर रही हो। इस बिन्दु पर प्रदेश सरकार को गौर करना होगा। क्योंकि लोकतंत्र में जनता के हित ही सर्वोपरि होते हैं।

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