इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि मृत कर्मचारी के आश्रित की नियुक्ति कानून के तहत की जाती है, उसकी वसीयत से मिले अधिकारों के तहत नहीं। कोर्ट ने कहा कि चपरासी पद पर मृतक आश्रित कोटे में नियुक्त याची को जिन छह आरोपों पर बर्खास्त किया गया है, वास्तव में वे आरोप कानून की निगाह में आरोप ही नहीं हैं।
यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने गौरी शुक्ला की याचिका पर अधिवक्ता आशीष कुमार व गिरीश सिंह को सुनकर दिया है। कोर्ट ने याची के खिलाफ आरोप गढ़ने वाले अधिशासी अधिकारी और जांच अधिकारी को भविष्य में सावधानी बरतने की नसीहत दी है। साथ ही अधिशासी अधिकारी द्वारा याची की बर्खास्तगी के आदेश को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कन्नौज की नगर पंचायत तिरवागंज में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी याची को तत्काल सेवा बहाल कर नियमित वेतन भुगतान का निर्देश दिया है।
याचिका के अनुसार याची को मनगढ़ंत आरोपों पर बिना उसका पक्ष सुने बर्खास्त कर दिया गया । याची के पति अतुल कुमार शुक्ल नगर पंचायत में कर्मचारी थे। पति पत्नी में कलह के कारण याची दो बच्चों को लेकर मायके आ गई। इसका फायदा उठाकर याची के पति की मां अभिलाषा देवी व भाई ने सारी संपत्ति की वसीयत करा ली। वसीयत में याची व उसके बच्चों को कोई अधिकार नहीं दिया गया। इसी बीच याची के पति की सेवाकाल में मौत हो गई। याची का तलाक नहीं हुआ था। इस पर पत्नी के रूप में आश्रित कोटे में याची की नियुक्ति की गई। दिवंगत कर्मचारी की मां की ओर से शिकायत की गई कि अनुकंपा नियुक्ति गलत की गई है।
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