भारत की शिक्षा व्यवस्था में गुणवत्तापूर्ण शिक्षकों की भूमिका अहम है। इसी उद्देश्य से शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) का प्रावधान बनाया गया, ताकि शिक्षकों के चयन और नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता और मानक सुनिश्चित हो सके। हालाँकि, हाल के दिनों में एक नया विमर्श उभरा है: क्या पदोन्नति के लिए भी टीईटी अनिवार्य करना न्यायसंगत होगा? विशेषकर तब, जब वरिष्ठ शिक्षकों को यह परीक्षा पहले नहीं देनी पड़ी हो।
पदोन्नति में टीईटी की अनिवार्यता: एक न्यायिक दुविधा
यदि सरकार पदोन्नति के लिए टीईटी को अनिवार्य करती है, तो यह निर्णय उन अनुभवी शिक्षकों के साथ अन्यायपूर्ण हो सकता है, जिन्होंने अपने करियर की शुरुआत में इस परीक्षा को नहीं दिया। उदाहरण के लिए, एक शिक्षक जिसने 20 वर्षों तक सेवा दी है, उसे पदोन्नति के लिए अचानक टीईटी की शर्त का सामना करना पड़े, तो यह उसके अनुभव और योगदान को नज़रअंदाज़ करने जैसा होगा। टीईटी का उद्देश्य शिक्षकों की बुनियादी योग्यता जाँचना है, लेकिन जो शिक्षक वर्षों से कार्यरत हैं, उनकी क्षमता का आकलन केवल एक परीक्षा पर निर्भर करना तर्कसंगत नहीं लगता।
क्यों ज़रूरी है पहले टीईटी का आयोजन?
1. वरिष्ठ शिक्षकों के अवसर की समानता: यदि पदोन्नति में टीईटी अनिवार्य है, तो सरकार को सबसे पहले सभी वर्तमान शिक्षकों के लिए यह परीक्षा आयोजित करनी चाहिए। इससे उन्हें अपनी योग्यता साबित करने का निष्पक्ष मौका मिलेगा।
2. पारदर्शिता बनाए रखना: बिना परीक्षा के पदोन्नति रोकने से अफवाहों और असंतोष को बढ़ावा मिलेगा। परीक्षा के बाद ही प्रोन्नति प्रक्रिया शुरू करने से निष्पक्षता सिद्ध होगी।
3. कानूनी विवादों से बचाव: यदि सरकार बिना टीईटी आयोजित किए पदोन्नति देती है, तो वरिष्ठ शिक्षक कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा सकते हैं, जिससे प्रशासनिक प्रक्रिया अटक सकती है।
संभावित नकारात्मक प्रभाव
– अनुभव की अवमानना: टीईटी को पदोन्नति से जोड़ने से शिक्षकों के वर्षों के अनुभव और प्रशिक्षण को कम आँका जा सकता है।
– मनोबल में कमी: वरिष्ठ शिक्षकों में हताशा फैल सकती है, जिससे शिक्षण गुणवत्ता प्रभावित होगी।
– पदोन्नति में देरी: यदि परीक्षा का आयोजन पदोन्नति के बाद होता है, तो अयोग्य पाए गए शिक्षकों को हटाने की प्रक्रिया जटिल हो जाएगी।
सरकार के लिए सुझाव
1. टीईटी का त्वरित आयोजन: सभी वर्तमान शिक्षकों के लिए विशेष टीईटी सत्र आयोजित करें, ताकि वे अपनी योग्यता साबित कर सकें।
2. संवाद और प्रशिक्षण: परीक्षा से पहले शिक्षकों को तैयारी के लिए समय और संसाधन दें।
3. चरणबद्ध कार्यान्वयन: नए नियम को धीरे-धीरे लागू करें, ताकि वरिष्ठों को समायोजित होने का मौका मिले।
शिक्षकों की पदोन्नति में टीईटी की अनिवार्यता एक सराहनीय कदम हो सकता है, लेकिन इसे पूर्व-न्याय के सिद्धांत पर लागू किया जाना चाहिए। सरकार का यह दायित्व है कि वह पहले सभी शिक्षकों को परीक्षा देने का अवसर दे, फिर पदोन्नति की प्रक्रिया आगे बढ़ाए। केवल तभी “वरिष्ठता” और “योग्यता” के बीच संतुलन बन पाएगा, और शिक्षा व्यवस्था में न्याय सुनिश्चित होगा।
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लेखक: शिक्षा समीक्षक
तिथि: [07/03/2025]
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