शिक्षामित्र शिक्षकों के बराबर कर रहे काम नहीं मिल रहा मेहनत का ‘दाम’

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 बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक स्कूलों में दो दशक से अधिक समय से बच्चों को पढ़ा रहे 1,43,450 शिक्षामित्र अपनी तकदीर पर रो रहे हैं। ये शिक्षामित्र दस हजार रुपये प्रतिमाह के मानदेय पर कक्षा एक से पांच तक के बच्चों को पढ़ाने पर विवश हैं, जबकि इन्हीं के साथ पढ़ा रहे शिक्षक उसी काम के लिए कई गुना अधिक वेतन पा रहे हैं। शिक्षामित्रों का दर्द है कि सरकार इन्हें कभी शिक्षक तो कभी संविदाकर्मी मानती है लेकिन मानदेय मजदूर से भी कम देती है। केंद्रीय श्रम मंत्रालय के अनुसार अकुशल मजदूर को 18500 रुपये और सकुशल मजदूर को 24500 रुपये प्रतिमाह मिलना चाहिए, लेकिन इन पढ़े-लिखे ‘कामगारों’ के बारे में कोई नहीं सोच रहा है।

वर्तमान में सभी राज्यों को देखें तो सबसे दयनीय स्थिति उत्तर प्रदेश के शिक्षामित्रों की ही है। सर्व शिक्षा अभियान के तहत दो दशक पहले पूरे देश में तकरीबन 7.5 लाख संविदा शिक्षक (शिक्षामित्र) रखे गए थे। इस दौरान कई राज्यों में ये संविदा शिक्षक पूर्ण शिक्षक बन गए तो तमाम राज्यों में इनका मानदेय बढ़ गया है लेकिन यूपी के शिक्षामित्र साल में 11 महीने दस हजार रुपये मानदेय पर पढ़ा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट से 25 जुलाई 2017 को सहायक अध्यापक पद पर समायोजन निरस्त होने के बाद सरकार ने शिक्षामित्रों का मानदेय 3500 से बढ़ाकर 10 हजार रुपये तो कर दिया लेकिन उसके बाद तकरीबन आठ साल में मानदेय में कोई वृद्धि नहीं हुई।

वेतन मानदेय में दस गुना का आया अंतर: पिछले ढाई दशक में परिषदीय प्राथमिक स्कूलों के सहायक अध्यापकों के वेतन और शिक्षामित्रों के मानदेय में दस गुना का अंतर आया है। 2001 में सहायक अध्यापक का वेतन 4600 रुपये और शिक्षामित्र का मानदेय 2250 रुपये था। उस समय शिक्षक के वेतन और शिक्षामित्र के मानदेय में मात्र दोगुने का अंतर था। आज 2001 में नियुक्त उसी शिक्षक को लगभग एक लाख रुपये मिल रहे हैं जबकि शिक्षामित्र को मात्र 10 हजार रुपये मिल रहे हैं। 2018 में नियुक्त सहायक अध्यापक को वेतन 37 हजार था और शिक्षामित्र को 10 हजार मिल रहा था। आज 2018 में नियुक्त उसी शिक्षक को 67 हजार रुपये वेतन मिल रहा है जबकि शिक्षामित्र को आज भी मात्र 10 हजार रुपये में जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है। 2018 से सहायक अध्यापक के वेतन में 30 हजार रुपये की बढ़ोतरी हुई है। उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षामित्र संघ के जिलाध्यक्ष वसीम अहमद का कहना है कि समायोजन निरस्त होने के बाद शिक्षामित्रों ने आंदोलन किया तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तत्कालीन उपमुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा की अध्यक्षता में शिक्षामित्रों की समस्याओं के समाधान के लिए हाईपावर कमेटी गठित की थी। उसके बाद नवंबर 2023 में शिक्षामित्रों की समस्याओं के निदान के लिए बेसिक शिक्षा निदेशक की अध्यक्षता में भी चार सदस्यीय कमेटी गठित की गई थी। कमेटी ने शिक्षामित्र नेताओं के साथ फरवरी 2024 में बैठक भी की थी। आखिरकार क्या कारण है कि दोनों कमेटी की रिपोर्ट न तो सार्वजनिक हुई और न ही समस्याओं का कोई समाधान हुआ।

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